रविवार, 25 सितंबर 2011

अभी वतन आजाद नही, आजाद हिंद तू फ़ौज बना!!

श्रम करके संध्या को घर में, अपने बिस्तर पर आया था
उस दिन ना जाने क्यों मैंने, मन में भारीपन पाया था

जब आँख लगी तो सपने में लहराता तिरंगा देखा था
राष्ट्र ध्वजा की गोद लिए, भारत माँ का बेटा था

जयहिंद का नारा बोल बोल के आकर वह चिल्लाये थे
उस रात स्वंय बाबू सुभाष, मेरे सपने में आये थे

बोले भारत भूमि में जन्मा है, तू कलंक क्यों लजाता है
राग द्वेष की बातो पर, क्यों अपनी कलम चलाता है

इन बातो पर तू कविता लिख, मै विषय तुम्हे बतलाता हूँ
वर्तमान के भारत की मै,झांकी तुझे दिखाता हूँ

हमने पूनम के चंदा को राहू को निगलते देखा है
हमने शीतल सरिता के पानी को उबलते देखा है

गद्दारों की लाशों को चन्दन से जलते देखा है
भारत माता के लालों को शोलो पर चलते देखा है

देश भक्त की बाहों में सर्पों को पलते देखा है
हमने गिरगिट सा इंसानों को रंग बदलते देखा है

जो कई महीनो से नही जला हमने वो चूल्हा देखा है
हमने गरीब की बेटी को फाँसी पर झूला देखा है

हमने दहेज़ बिन ब्याही बहुओ को रोते देखा है
मजबूर पिता को गर्दन बल पटरी पर सोते देखा है

देश द्रोही गद्दारों के चहरे पर लाली देखी है
हमने रक्षा के सौदों में होती हुई दलाली देखी है

खादी के कपड़ो के भीतर हमने दिल काला देखा है
इन सब नमक हरामो का,शेयर घोटाला देखा है

हमने तंदूर में नारी को रोटी सा सिकते देखा है
लाल किले के पिछवाड़े, अबला को बिकते देखा है

राष्ट्रता की प्रतिमाओ पर,लगा मकड़ी का जाला देखा है
जनपद वाली बस्ती में हमने कांड हवाला देखा है

आतंकवाद के कदमों को इस हद तक बढ़ते देखा है
अमरनाथ में शिव भक्तों को हमने मरते देखा है

होटल ताज के द्वारे, उस घटना को घटते देखा है
माँ गंगा की महाआरती में, बम फटते देखा है

हमने अफजल की फाँसी में संसद को सोते देखा है
जो संसद पर बलिदान हुए, उनका घर रोते देखा है

उन सात पदों के सूरज को भारत में ढलते देखा है
नक्शलवाद की ज्वाला में, मैंने देश को जलते देखा है

आजादी के दिन दिल्ली,बन गई दुल्हनिया देखी है
15 अगस्त के दिन भोलू की भूखी मुनिया देखी है

हमने संसद के अन्दर राष्ट्र की भ्रस्टाचारी देखी है
हमने देश के साथ स्वयं, होती गद्दारी देखी है

ये सारी बाते सपने में नेता जी कहते जाते थे
उनकी आँखों से झर झर आंसू भी बहते जाते थे

बोले जा बेटे भारत माता के, अब तू सोते लाल जगा
अभी वतन आजाद नही, आजाद हिंद तू फ़ौज बना

अच्छा लगा हो तो आगे फॉरवर्ड कीजिये, और भारतीय भाषाओं में अनुवादित कीजिये, अपने ब्लॉग पर डालिए, मेरा नाम हटाइए, अपना नाम /मोबाईल नंबर डालिए| मुझे कोई आपत्ति नहीं है| मतलब बस इतना है कि ज्ञान का प्रवाह होते रहने दीजिये| 

सोमवार, 19 सितंबर 2011

वतन खतरे में है


जागो जवानो वतन की आबरू खतरे में है

सो नहीं सकते अपना वतन खतरे में है


नौजवानों जाग जाओ बुलाता है वतन


देश की अपने अस्मत पड़ी खतरे में है


अब सुरक्षित न हिमालय न ही ब्रह्मपुत्र है


देख लो सीमायें सारी खड़ी खतरे में है

सो चुके हैं देश को रह देना जिनका काम

ठोंक कर ताल उठो, वतन खतरे में है



सबको जना इस माटी ने क़र्ज़ इसका है बहुत

लाज माँ की, शर्म बहनों की अब खतरे में है


बाँध कर राखी उठा लो तुम कसम अब दोस्तों


ये सदा "कादर" की है अब वतन खतरे में है


केदारनाथ "कादर"

बुधवार, 10 अगस्त 2011

आपका का सच्चा मित्र या महज़ एक छलावा?

आपका का सच्चा मित्र या महज़ एक छलावा?
               दोस्तों इस लिए कहता हूँ एक सच्च मित्र बनो !! 

http://rajpurohitagra.blogspot.com/
      आज कल हर बात के लिए कोई न कोई दिवस मनाया जाता है! मित्रता दिवस पूर्व की तरह इस बार भी पूरे जोर शोर से मनाया गया! सभी जानते हैं कि सच्चा मित्र बड़े भाग्य से ही सुलभ हो पाता है! रामचरित मानस में भी गोस्वामी तुलसी दास जी ने सच्चे मित्र की पहचान के लिए जो कुछ लिखा है उसका भावार्थ यह है कि अपने पहाड़ से दुख को एक धूल के कण के समान और मित्र के रज कण समान दुख को पर्वत के समान समझना चाहिए!(वर्तमान में ठीक इसके विपरीत हो रहा है यह एक विचारणीय प्रश्न है) मित्र की यथाशक्ति मदद कर सकते हैं तो अवश्य करनी चाहिए और जब दोस्त विपत्ति में हो तो उसे पूर्व से सौ गुना स्नेह करना चाहिए!और एक सच्चा मित्र वही है अथवा हो सकता है जो अपने मित्र को कुमार्ग(गलत) पर जाने से रोके और सुमार्ग पर ले चले!और आज तो "प्रेमी ही अपनी प्रेमिकाओं की हत्या तक करने में जरा सा भी नहीं चूकते!" जबकि संबंधों की शुरुआत मित्रता से ही शुरू हो पाती है! जो मित्र बनने लायक भी नहीं है वह क्या जीवन साथी बन सकते हैं? आज आधुनिक पीढ़ी को चाहिए कि प्राचीन ग्रंथों की अच्छी बातों को ग्रहण करे और जो प्रसंग अच्छा रास्ता दिखाते हों उन्हें मन से स्वीकार किया जाए, इसमें कोई हर्ज नहीं है!   

मेरे सच्चा मित्रो की पोस्ट पर  जाए. 
इस ब्लॉग की 100 वीं पोस्ट पेश करते हुए मुझे खुशी और हर्ष हो रहा है! 
सवाई सिंह राजपुरोहित  AAJ KA AGRA
                          और 
  सोनू जी का ब्लॉग SMS HINDI 

शुक्रवार, 24 जून 2011

मुर्गी पहले आई या अंडा, सुलझ गई है पहेली!

पहले अंडा आया या मुर्गी ? 


     यह सवाल सदियों से वैज्ञानिकों और दर्शनशास्त्रियों का भेजा मथता रहा है कि कौन पहले आया मुर्गी या अंडा?
 
आप बताइए कि कौन पहले आया.

अगर आप कहेंगे कि अंडा तो अगला सवाल होगा कि अंडा दिया किसने.

और अगर आप कहेंगे कि मुर्गी पहले आई तो सवाल होगा कि मुर्गी आसमान से तो टपकी नहीं होगी, वह किसी अंडे से ही निकली होगी. तो अगर वह अंडे से निकली तो अंडा पहले से था...

आप चकरा जाएँगे, झुँझला जाएँगे...परेशान हो जाएँगे लेकिन जवाब मिलेगा नहीं.


लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस यक्ष प्रश्न का जवाब ढूंढ़ निकालने का दावा किया है।  

शेफील्ड और वारविक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक दल ने दावा किया है कि धरती पर अंडे से पहले मुर्गी का जन्म हुआ था। वैज्ञानिकों ने पाया कि ओवोक्लाइडिन नाम का प्रोटीन अंडे के खोल के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण होता है।

उन्होंने बताया कि यह प्रोटीन मुर्गी के अंडाशय से पैदा होता है इसलिये पहले अंडा आया या मुर्गी अब यह पहेली सुलझ गई है। वैज्ञानिकों ने कहा कि पहले मुर्गी आई और इसके बाद अंडा पैदा हुआ।

डेली एक्सप्रेस के मुताबिक रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि प्रोटीन पैदा करने वाली मुर्गियां पहले कैसे आईं। इस दल ने अंडे के खोल को देखने के लिये अत्याधुनिक कंप्यूटर हेक्टर का इस्तेमाल किया।

  शोध से जुडे़ प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. कोलिन फ्रीमैन ने कहा, 'लंबे समय से यह संदेह बना हुआ था कि अंडा पहले आया लेकिन अब हमारे पास वैज्ञानिक सबूत है जो हमें बताता है कि मुर्गी पहले आई।

"मुर्गी के अंडे का खोल बनाने के लिए आपके पास मुर्गी होनी चाहिए, आप तर्क दे सकते हैं कि आपको ओसी17 प्रोटीन की ज़रुरत होगी और वह मुर्गी के पास है क्योंकि अंडे का खोल तैयार करने के लिए जिस प्रोटीन की ज़रुरत है वह सिर्फ़ मुर्गी के अंडाशय में होता है. वह मुर्गी शरीर में और कहीं नहीं होता!"  :- डॉक्टर कोलिन फ़्रीमैन
  

सोमवार, 16 मई 2011

सन् 1835 में पहला अंग्रेज "मैकाले" भारत का दौरा करने के बाद ब्रिटिश संसद में दिए अपने भाषण में बोला ...

  सन् 1835 में पहला अंग्रेज "मैकाले" भारत का दौरा करने के बाद ब्रिटिश संसद में दिए अपने भाषण में बोला ( ये दस्तावेज संग्रहित हैं ) :

" मैं भारत के अनेक राज्यों में घूमा. वहाँ मैंने एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं देखा जो भिखारी हो, चोर हो. ऐसी विलक्षण सम्पदा देखी है मैंने इस देश में, ऐसे उच्चतम मौलिक विचार, इतने काबिल/गुणी व्यक्ति देखे हैं कि मुझे नहीं लगता कि हम कभी इस देश को गुलाम बना पाएँगे, जब तक कि हम इस देश की अध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत को नष्ट ना कर दें, जो इस देश की वास्तव में रीढ़ है और इसलिए मेरा प्रस्ताव है कि इस देश की वर्षों पुरानी "शिक्षा प्रणाली" और यहाँ की "पौराणिक" संस्कृति को बदल दिया जाए, क्यूंकि जब भारतीय ये सोचेंगे कि जो कुछ भी विदेशी है और ब्रिटेन का है, वह अच्छा और बेहतर है उनके स्वयं से, तब ये भारतीय अपनी पौराणिक संस्कृति और स्वाभिमान को खो बैठेंगे. और तब ये लोग वो बन जाएंगे जो हम उन्हें बनाना चाहते हैं, एक वास्तविक गुलाम भारत !"

      सौजन्यः -
http://www.scribd.com/doc/1167573/what-was-india-in-१८३५

मैकाले की हमारे देश के बारे में अच्छी सोच थी। पढ़कर मुझे तो अच्छा लगा आपको केसा लगा बताए 

रविवार, 10 अप्रैल 2011

किताबें करती हैं.....

                आजकल लोग किताबों की बजाय इंटरनेट अथवा अन्य साधनों से ज्ञानार्जन करना अधिक मुफीद समझते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि किताब पढ़ने की परम्परागत आदत आपके कैरियर में चार चांद लगा सकती है? किताबों के फायदों पर हुई एक रिसर्च की बात मानें तो जो किशोर अपनी स्कूली किताबों के अलावा अन्य किताबें पढ़ते हैं उनका कैरियर दूसरों की तुलना में अधिक बूस्ट करता है। रिसर्च के मुताबिक 16 वर्षीय किशोर यदि महीने में एक बार भी किताब पढ़ लेते हैं, तो 33 वर्ष की आयु तक उनमें मैनेजमेंट के गुण विकसित हो जाते हैं और उनका कैरियर बेस्ट करने लगता है। जबकि यह बात उनमें नहीं पाई गई जो किताबों में रुचि नहीं लेते हैं। दोस्तों के साथ खेलने, म्यूजियम जाने या कुछ अन्य काम करने के अलावा किताबें पढ़ने की आदत किशोरों को परफेक्ट बनाने में मदद करती है। चाइल्ड डेवलपमेंट एक्पर्ट सू पालमर ने बताया कि पढ़ने की आदत बच्चों को सामाजिक बनाने में मददगार साबित हुई है। दरअसल इससे बच्चों के मस्तिष्क को सकारात्मक दिशा मिलती है।




रविवार, 3 अप्रैल 2011

क्रिकेट के भगवान सचिन का एक सपना



क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले मास्टर सचिन तेंदुलकर का शतकों का महाशतक बनाने का सपना भले ही अधूरा रह गया हो लेकिन क्रिकेट विश्वकप जीतने का उनका सपना पूरा हो गया।

 


और  28 साल बाद मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में शनिवार को 121 करोड़ हिंदुस्तानियों का सपना पूरा हो गया। धौनी के शेरों ने हमें फिर से क्रिकेट का विश्व चैंपियन बना दिया। 49वें ओवर में धौनी के विजयी छक्का लगाते ही पूरा देश झूम उठा। इस जीत के साथ ही टीम इंडिया ने कोलकाता में 1996 विश्व कप सेमीफाइनल में श्रीलंका से मिली हार का बदला भी ले लिया। सचिन ने इस मैच में अपना महाशतक भले ही नहीं पूरा किया, लेकिन उन्होंने आज अपने जीवन का सबसे बड़ा दिन जी लिया। जीत के बाद खिलाडि़यों और क्रिकेट प्रेमियों की आंखों में कहीं खुशी के और कहीं गम के आंसू थे
 और मेरी कालोनि  में देर रात तक आतिशबाजी होती रही। ढोल नगाड़ों की थाप पर लोग झूमते रहे और लोगों की टोलियां सड़कों पर झंडा लहराती हुई टीम इंडिया की जय हो के नारे लगाती रहीं

शनिवार, 2 अप्रैल 2011

टीम इंडिया को शुभकामनाय चक दे इंडियाें

मुंबई में होने वाले वर्ल्ड कप के फ़ाइनल मैच में जीत के लिए हमारी टीम इंडिया को शुभकामनायें...

कप के साथ भारत श्रीलंका के कप्तान

इस बार वर्ल्ड कप हमारा है 
काफी समय बाद भारत के पास मौका आया है
कि वह 1983 को दोहराए. वर्तमान में हमारी जिस तरह की टीम है, 
उससे आशा बंधती है कि  हम वर्ल्ड कप जीत सकती है.
लेकिन फिर भी न जाने क्यों लगता है 
कि कहीं मामला उल्टा न पड़ जाए. हालांकि, 
मैं खेल भावना का पक्षधर हूं 
और में जनता कि वर्ल्ड कप कोई भी टीम जीते लेकिन 
मुकाबला रोचक होना चाहिए
मैं टीम इंडिया को ढेर सारी शुभकामनायें देता हूं !

चक दे इंडिया  
                हम ही जीतेंगे।
                                  चक दे इंडिया   
                                                  और हम ही जीतेंगे। 

बुधवार, 23 मार्च 2011

भगत सिंह को श्रद्धांजलि



   


             बड़ी खुशनसीब होगी वह कोख और गर्व से चौडा हो गया होगा उस बाप का सीना जिस दिन देश की आजदी के खातिर उसका लाल फांसी चढ़ गया था। हॉं आज उसी माँ-बाप के लाल भगत सिंह का जन्‍म दिवस है। आज देश भगत सिंह के जन्‍मदिन की सौ‍वीं वर्ष गॉंठ मना रहा है।

                भगत सिंह का जन्‍म 28 सितंबर 1907 में एक देश भक्‍त क्रान्तिकारी परिवार में हुआ था। सही कह गया कि शेर कर घर शेर ही जन्‍म लेता है। इनका परिवार सिंख पंथ के होने बाद भी आर्यसमाजी था और स्‍वामी दयानंद की शिक्षा इनके परिवाद में कूट-कूट कर भरी हुई थी।एक आर्यसमाजी परिवेश में बड़े होने के कारण भगत सिंह पर भी इसका प्रभाव पड़ा और वे भी जातिभेद से उपर उठ गए । ९वीं तक की पढ़ाई के बाद इन्होंने पढ़ाई छोड़ दी । और यह वही काला दिन था जब देश में जलियावाला हत्‍या कांड हुआ था। इस घटना सम्‍पूर्ण देश के साथ साथ इस 12 वर्षीय बालक के हृदय में अंग्रेजों के दिलों में नफरत कूट-कूट कर भर दी। जहॉं प्रारम्‍भ में भगत सिंह क्रान्तिकारी प्रभाव को ठीक नही मानते थे वही इस घटना ने उन्‍हे देश की आजादी के सेनानियों में अग्रिम पक्तिं में लाकर खड़ा कर रही है।

            यही नही लाला लाजपत राय पर पड़ी एक एक लाठी, उस समय के युवा मन पर पडे हजार घावों से ज्‍यादा दर्द दे रहे थे। भगत सिंह, चन्‍द्रशेखर आजाद, बटुकेश्‍वर दत्‍त और राजगुरू ने पुलिस सुपरिंटेंडेंट सैंडर्स की हत्‍या का व्‍यूह रचना की और भगत सिंह और राजगुरू के गो‍लियों के वार से वह सैंडर्स गॉड को प्‍यारा हो गया।
निश्चित रूप से भगत सिंह और उनके साथियों में जोश और जवानी चरम सीमा पर थी। राष्‍ट्रीय विधान सभा में बम फेकने के बाद चाहते तो भाग सकते थे किन्‍तु भारत माता की जय बोलते हुऐ फाँसी की बेदी पर चढ़ना मंजूर किया और 23 मार्च 1931 हसते हुऐ निम्‍न गीत गाते हुये निकले और भारत माता की जय बोलते हुऐ फाँसी पर चढ़ गये। 


फ़ासी के पहले ३ मार्च को अपने भाई कुलतार को लिखे पत्र में भगत सिह ने लिखा था -

उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्ज़-ए-ज़फ़ा (अन्याय) क्या है
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है
दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें,
चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें
सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें ।




इससे उनके शौर्य का अनुमान लगाया जा सकता है। शहीद भगत सिंह सदा ही शेर की तरह जिए। चन्द्रशेखर आजा़द से पहली मुलाकात के समय जलति हुई मोमबती पर हाथ रखकर उन्होने कसम खाई कि उनकि जिन्दगी देश पर हि कुर्बान होगी।

आभार  
प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह 
http://mahashakti.bharatuday.in/ 

मंगलवार, 8 मार्च 2011

महिला दिवस की सार्थकता क्या है

महिला दिवस की सार्थकता समग्र रूप से हमारे देश में आज भी कानून तो हैं, पर उनका पालन नहीं है। आज भी नारी शोषित तबके की ही है। ऐसा हाल तब है जब देश की सर्वोच्च सत्ता महिला, सबसे बड़ी पार्टी की अध्यक्ष महिला, सबसे बड़े प्रदेश की मुख्यमंत्री भी महिला हैं। हर कोई कुछ न कुछ कहीं न कहीं दोषी है। अगर हमें इसे दूर करना है तो सोच बदलनी होगी। तभी महिला दिवस की सार्थकता साबित होगी।  

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर पूरा आगरा शहर एक साथ रन फार वोटर रैली

राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर पूरा शहर आगरा एक साथ रन फार वोटर रैली में दौड़ेगा तो चुनावों में निष्पक्ष भागीदारी के लिए एक साथ शपथ भी लेगा।
अमर उजाला की मीडिया पार्टनरशिप में प्रशासन द्वारा आयोजित किए जा रहे जन जागरूकता अभियान में मंगलवार को रन फार वोटर रैली के साथ विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। इसमें वरिष्ठतम मतदाताओं का सम्मान, नए मतदाताओं को सम्मानित कर लोकतंत्र के महापर्व के आधार चुनाव के प्रति संवेदनशील बनाना और निष्पक्ष मतदान के लिए शपथ ग्रहण के कार्यक्रम रखे हैं। इसके लिए कलेक्टे्रट से सुबह 10.30 बजे रैली निकाली जाएगी। इसमें हजारों की संख्या में लोगों की भागीदारी रहेगी। जिलाधिकारी की अगुवाई में निकलने वाली रैली सेंट जोंस कालेज पहुंच कर सभा में तब्दील हो जाएगी। यहां पर सम्मान कार्यक्रम होंगे। रैली व जनहित में जागरूकता अभियान के लिए संगठनों का जुड़ना जारी है।
आगरा आउटडोर एडवरटाइजिंग वेलफेयर एसोसिएशन ने शहर में कई स्थानों पर होर्डिंग्स लगवाकर लोगों को रैली से जुड़ने और जागरूक मतदाता होने की अपील की है। एसोसिएशन के अध्यक्ष सचिन रोहड़ा, सचिव अनिल रावत और कोषाध्यक्ष अशोक कटारिया का कहना है कि अमर उजाला और जिला प्रशासन आगरा की इस पहल का पूरे शहर को स्वागत करना चाहिए। हर व्यस्क नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग करे यह लोकतंत्र का महत्वपूर्ण पहलू है।

‘‘मतदान का अधिकार सर्वश्रेष्ठ अधिकार है और इसका समुचित प्रयोग करना चाहिए। राष्ट्रीय मतदाता दिवस की हीरक जंयती पर के यह आयोजन सभी के लिए और सभी को इसमें भागीदारी कर अपनी आस्था प्रकट करनी चाहिए।’’
-अमृत अभिजात,जिलाधिकारी एवं जिला निर्वाचन अधिकारी, आगरा
 

सुबह 10.30 बजे से कलेक्ट्रेट से शुरू होगी रैली


 


हमें मतदाता होने पर गर्व है 


यह थी शपथ
‘हम, भारत के नागरिक, लोकतंत्र में अपनी पूर्ण आस्था रखते हुए शपथ लेते हैं कि हम अपने देश की लोकतांत्रिक परंपराओं की मर्यादा बनाएं रखेंगे तथा स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं शांतिपूर्ण, निर्वाचन की गरिमा को अक्षुण्ण रखते हुए, निर्भीक होकर, धर्म, वर्ग, जाति, समुदाय, भाषा अथवा, अन्य किसी भी प्रलोभन से प्रभावित हुए बिना सभी निर्वाचनों में अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।’
 


और 

रविवार, 23 जनवरी 2011

सुभाष जयंती 23 जनवरी पर विशेष


23 जनवरी 1897 


आज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी की जयंती है नेताजी सुभाष चन्द्र बोस परतंत्र भारत में तरूणाई के आदर्श बनाकर उभरे और उन्होंने " तुम मुझे आजादी दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा " का अलख जगाकर राष्ट्र को आजादी
 हासिल करने के लिए प्रेरित किया और युवा आदमी मिसाल पेश की जिसे इतिहास कभी नहीं भुला सकेगा आज भी नेताजी युवाओं के बीच एक प्रेरक आदर्श के रूप में पहिचाने जाते हैं!

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जीवन परिचय

             भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक, आजाद हिन्द फौज के संस्थापक और जय हिन्द का नारा देने वाले सुभाष चन्द्र बोस जी की आज जयंती है. 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक नामक नगरी में सुभाष चन्द्र बोस का जन्म हुआ था. अपनी विशिष्टता तथा अपने व्यक्तित्व एवं उपलब्धियों की वजह से सुभाष चन्द्र बोस भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं.

               स्वाधीनता संग्राम के अन्तिम पच्चीस वर्षों के दौरान उनकी भूमिका एक सामाजिक क्रांतिकारी की रही और वे एक अद्वितीय राजनीतिक योद्धा के रूप में उभर के सामने आए. सुभाष चन्द्र बोस का जन्म उस समय हुआ जब भारत में अहिंसा और असहयोग आन्दोलन अपनी प्रारम्भिक अवस्था में थे. इन आंदोलनों से प्रभावित होकर उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. पेशे से बाल चिकित्सक डॉ बोस ने नेताजी की राजनीतिक और वैचारिक विरासत के संरक्षण के लिए नेताजी रिसर्च ब्यूरो की स्थापना की. नेताजी का योगदान और प्रभाव इतना बडा था कि कहा जाता हैं कि अगर आजादी के समय नेताजी भारत में उपस्थित रहते, तो शायद भारत एक संघ राष्ट्र बना रहता और भारत का विभाजन न होता. 

       शुरुआत में तो नेताजी की देशसेवा करने की बहुत मंशा थी पर अपने परिवार की वजह से उन्होंने विदेश जाना स्वीकार किया. पिता के आदेश का पालन करते हुए वे 15 सितम्बर 1919 को लंदन गए और वहां 
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन करने लगे. वहां से उन्होंने आई.सी.एस. की परीक्षा उत्तीर्ण की और योग्यता सूची में चौथा स्थान प्राप्त किया. पर देश की सेवा करने का मन बना चुके नेताजी ने आई.सी.एस. से त्याग पत्र दे दिया.

भारत आकर वे देशबंधु चितरंजन दास के सम्पर्क में आए और उन्होंने उनको अपना गुरु मान लिया और कूद पड़े देश को आजाद कराने. चितरंजन दास के साथ उन्होंने कई अहम कार्य किए जिनकी चर्चा इतिहास का एक अहम हिस्सा बन चुकी है. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सुभाष चन्द्र बोस की सराहना हर तरफ हुई. देखते ही देखते वह एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गए. पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ सुभाषबाबू ने कांग्रेस के अंतर्गत युवकों की इंडिपेंडेंस लीग शुरू की.

लेकिन बोस के गर्म और तीखे तेवरों को कांग्रेस का नरम व्यवहार ज्यादा पसंद नहीं आया. उन्होंने 29 अप्रैल 1939 को कलकत्ता में हुई कांग्रेस की बैठक में अपना त्याग पत्र दे दिया और 3 मई 1939 को सुभाषचन्द्र बोस ने कलकत्ता में फॉरवर्ड ब्लाक अर्थात अग्रगामी दल की स्थापना की. सितम्बर 1939 में द्वितीय विश्व युद्व प्रांरभ हुआ. ब्रिटिश सरकार ने सुभाष के युद्ध विरोधी आन्दोलन से भयभीत होकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. सन् 1940 में सुभाष को अंग्रेज सरकार ने उनके घर पर ही नजरबंद कर रखा था. नेताजी अदम्य साहस और सूझबूझ का परिचय देते हुए सबको छकाते हुए घर से भाग निकले.

नेताजी ने एक मुसलमान मौलवी का वेष बनाकर पेशावर अफगानिस्तान होते हुए बर्लिग तक का सफर तय किया. बर्लिन में जर्मनी के तत्कालीन तानाशाह हिटलर से मुलाकात की और भारत को स्वतंत्र कराने के लिए जर्मनी व जापान से सहायता मांगी. जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता संगठन और आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की. इसी दौरान सुभाषबाबू, नेताजी नाम से जाने जाने लगे. पर जर्मनी भारत से बहुत दूर था. इसलिए 3 जून 1943 को उन्होंने पनडुब्बी से जापान के लिए प्रस्थान किया. पूर्व एशिया और जापान पहुंच कर उन्होंने आजाद हिन्द फौज का विस्तार करना शुरु किया. पूर्व एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण करके वहाँ स्थानीय भारतीय लोगों से आज़ाद हिन्द फौज में भरती होने का और आर्थिक मदद करने का आह्वान किया. उन्होंने अपने आह्वान में संदेश दिया “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूँगा.”

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आज़ाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया. अपनी फौज को प्रेरित करने के लिए नेताजी ने “दिल्ली चलो” का नारा दिया. दोनों फौजों ने अंग्रेजों से अंडमान और निकोबार द्वीप जीत लिए पर अंत में अंग्रेजों का पलड़ा भारी पड़ा और आजाद हिन्द फौज को पीछे हटना पड़ा.

6 जुलाई, 1944 को आजाद हिंद रेडियो पर अपने भाषण के माध्यम से गाँधीजी से बात करते हुए, नेताजी ने जापान से सहायता लेने का अपना कारण और आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्देश्य के बारे में बताया. इस भाषण के दौरान, नेताजी ने गांधीजी को राष्ट्रपिता बुलाकर अपनी जंग के लिए उनका आशिर्वाद मांगा. इस प्रकार, नेताजी ने गांधीजी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता बुलाया.

द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद नेताजी को नया रास्ता ढूँढना जरूरी था. उन्होने रूस से सहायता माँगने का निश्चय किया था. 18 अगस्त, 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे. इस सफर के दौरान वे लापता हो गए. इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखाई नहीं दिए. 23 अगस्त, 1945 को जापान की दोमेई खबर संस्था ने दुनिया को खबर दी कि 18 अगस्त के दिन नेताजी का हवाई जहाज ताइवान की भूमि पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और उस दुर्घटना में बुरी तरह से घायल होकर नेताजी ने अस्पताल में अंतिम साँस ले ली थी.

      फिर नेताजी की अस्थियाँ जापान की राजधानी तोकियो में रेनकोजी नामक बौद्ध मंदिर में रखी गयीं. स्वतंत्रता के पश्चात, भारत सरकार ने इस घटना की जाँच करने के लिए, 1956 और 1977 में दो बार आयोग गठित किया. दोनों बार यह नतीजा निकला कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में ही मारे गए थे. मगर समय-समय पर उनकी मौत को लेकर बहुत सी आंशकाएं जताई जाती रही हैं. भारत के सबसे बड़े स्वतंत्रता सेनानी और इतने बड़े नायक की मृत्यु के बारे में आज तक रहस्य बना हुआ है जो देश की सरकार के लिए एक शर्म की बात है.

      नेताजी ने उग्रधारा और क्रांतिकारी स्वभाव में लड़ते हुए देश को आजाद कराने का सपना देखा था. अगर उन्हें भारतीय नेताओं का भी भरपूर सहयोग मिला होता तो देश की तस्वीर यकीकन आज कुछ अलग होती. नेताजी सुभाष चन्द बोस को हमारी तरफ से भावभीनी श्रद्धांजलि.

गुरुवार, 20 जनवरी 2011

आगरा कालेज में राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह

आगरा कालेज में राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में मौजूद अतिथि

आगरा कालेज में राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डीएन जौहर ने यह उद्गार नैतिकता एवं मानव मूल्यों के उन्नयन विषय पर आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किया। उन्होंने रविवार को आगरा कालेज में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का
उद्घाटन किया। इंडियन एकोनामिक एसोसिएशन के सचिव प्रो. एके ठाकुर एवं राज्यपाल उ.प्र. के विधि सलाहकार डॉ. अरविंद मिश्रा बतौर विशिष्ट अतिथि मौजूद रहे।
संगोष्ठी में बीज व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए प्रो. ठाकुर ने कहा कि हमारा दर्शन रहा है कि लक्ष्य को प्राप्त करने के साधन अच्छे होने चाहिए। आज हम अपने आदर्शों से भटक रहे हैं। लोग उपदेश देने और दूसरी की कमी निकालने में लगे हैं। स्वयं का मूल्यांकन नहीं हो रहा है। विश्वविद्यालयों की शैक्षिक अराजकता सिद्ध कर रही है कि मूल्यों में गिरावट आई है। प्रो. जौहर ने कहा नागरिक समाज की अवधारणा मूल्यों की बुनियाद पर टिकी है। जीवन में मातृ, पितृ, गुरु और समाज का ऋण होता है। सभी ऋण को चुकाना होगा। समाज के ऋण चुका कर ही मूल्यों की रक्षा होगी। उन्होंने हर क्षेत्र के अपने-अपने मूल्य बताए।
संगोष्ठी में आगरा कालेज के प्राचार्य डॉ. मनोज कुमार रावत कालेज का इतिहास और उच्च शिक्षा में किए जा रहे नवीन प्रयासों के बारे में बताया। संगोष्ठी की सचिव अर्थशास्त्र विभाग की डॉ. दीपा रावत ने संगोष्ठी के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। 


इस अवसर पर एक पत्रिका स्मारिका का विमोचन करते अतिथि   



इस अवसर पर एक पत्रिका  स्मारिका का विमोचन हुआ और हिंदी विभाग के डॉ. भूपाल सिंह की "वैल्यू एंड सिविलाइजेशन"पर डाक्यूटमेंट्री प्रस्तुत की गई। अंत में अतिथियों को शाल उढ़ाकर और श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया गया। पहले दिन चले तकनीकी सत्र में नीतिशास्त्र और मानव मूल्यों के सैद्धांतिक निहितार्थ, भूमंडलीकरण के युग में व्यापारिक नीति शास्त्र और मूल्य की भूमिका आदि विषयों पर शोध पत्र पढ़े गए। 

आगरा कालेज के अर्थशास्त्र विभाग में आयोजित संगोष्ठी में उपस्थित लोग।
समापन सत्र में नैतिकता का पहला पाठ बच्चों को मां सिखाती है। संस्कार के साथ मानवीय मूल्य हमारे जीवन का हिस्सा बन जाते हैं, लेकिन वैश्वीकरण के प्रभाव और बदलती प्राथमिकताओं ने मूल्यों की प्राथमिकता बदल दी है। जरूरी है कि शिक्षा के साथ धर्म को जोड़ दिया जाए। धर्म नैतिकता को मानव मूल्यों से जोड़ने का काम करेगा। यह विचार आगरा कॉलेज में चल रही दो दिवसीय संगोष्ठी में व्यक्त किये गये। नैतिकता व मानवीय मूल्यों का उन्नयन संगोष्ठी का समापन पैनल डिस्कशन के साथ हुआ।


आगरा कालेज में दुसरे दिन राष्ट्रीय संगोष्ठी मौजूद अतिथि




आगरा कालेज के प्राचार्य डॉ. मनोज कुमार रावत संबोधित करते  


कॅालेज के अर्थशास्त्र विभाग में दो दिवसीय संगोष्ठी के अंतिम दिन पैनल डिस्कशन में राज्यपाल के विधि सलाहाकार डॉ. अरविंद मिश्रा, सह संयोजक डॉ. आलोक कुमार, प्रो. वेद त्रिपाठी, डॉ. शोभा शर्मा और डॉ. तरुण शर्मा ने नैतिकता और मानव मूल्यों के उन्नयन की नींव परिवार से रखने पर जोर दिया। डॉ. अरविंद मिश्रा ने कहा कि अगर सभी अपने काम के नैतिक सिद्धांतों का पालन करें तो मूल्यों का रास रोका जा सकता है। प्रो. वेद त्रिपाठी ने कहा कि समय के साथ मूल्यों में परिवर्तन आता है और विकास के साथ भ्रष्टाचार बढ़ता है। डॉ. तरुण शर्मा ने कहा कि धर्म की मदद से हम नैतिकता और मानवीय मूल्यों के ह्रास को रोक सकते हैं। डॉ. शोभा शर्मा के अनुसार सामाजिक, आर्थिक और औद्योगीकरण के चलते मानव मूल्यों में परिवर्तन आता है। 

 शोध पत्र प्रस्तुत करते  

इससे पूर्व तीन समानांतर तकनीकी सत्रों में 35 से ज्यादा शोध पत्र प्रस्तुत किये गये। समापन सत्र को नारायण कॉलेज शिकोहाबाद के पूर्व प्राचार्य डॉ. जयशंकर प्रसाद द्विवेदी ने भी संबोधित किया। अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ. मनोज रावत ने कहा कि नैतिक और सामाजिक मूल्यों के संवर्धन में कॉलेज व शिक्षक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, आगरा कॉलेज ने इसकी शुरूआत कर दी है। आयोजन सचिव दीपा रावत ने धन्यवाद किया। संचालन डॉ. उमेश चंद्रा ने किया। इस दौरान डॉ. एसएस गोयल, डॉ. एससी गोयल, डॉ. वीके माहेश्वरी, डॉ. आरके श्रीवास्तव, डॉ. सुधीर चौहान, डॉ. दीपशिखा सिंघल, डॉ. सुनीता नंदा, डॉ. शरद भारद्वाज, डॉ. जयश्री भारद्वाज, डॉ. नीरजा माहेश्वरी, प्रो. अश्वनी शर्मा, डॉ. राकेश कुमार, डॉ. अमित अग्रवाल मौजूद थे।


 नारायण कॉलेज शिकोहाबाद के पूर्व प्राचार्य डॉ. जयशंकर प्रसाद द्विवेदी ने भी संबोधित करते 
राष्ट्रीय संगोष्ठी में समापन सत्र  
आगरा कालेज के प्राचार्य डॉ. मनोज कुमार रावत मिडिया को जानकारी देते  
संगोष्ठी में उपस्थित लोग

संगोष्ठी में उपस्थित 

संगोष्ठी की सचिव अर्थशास्त्र विभाग की डॉ. दीपा रावत ने धन्यवाद ज्ञापित किया। समापन सत्र के अंत में राष्ट्रगान प्रस्तुत किया।

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

आज राहुल गांधी आगरा में







                कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी मंगलवार को छात्र-छात्राओं से रूबरू होंगे। निर्धारित कार्यक्रम के तहत श्री गांधी विमान से दोपहर तिन बजे स्थानीय एयरपोर्ट पर आएंगे। फिर सड़क मार्ग द्वारा सूर सदन पहुंचेंगे। जहां वे एनएसयूआई द्वारा आयोजित सम्मेलन में मेधावी छात्र-छात्राओं से सीधे संवाद करेंगे और आगरा में कॉलेज छात्रों से मुलाकात करेंगे। इसके बाद वह पांच बजे वापस एयरपोर्ट पहुंचकर दिल्ली लौट जाएंगे। सूरसदन में कांग्रेसियों को प्रवेश नहीं मिलेगा। एयरपोर्ट जाने के लिए भी करीब 30 नाम सूचीबद्ध किये गये हैं। इनमें पार्टी अध्यक्षों के साथ प्रदेश पदाधिकारी और पूर्व सांसद तथा पूर्व विधायक शामिल हैं। हालांकि देर रात तक सूची में नाम जुड़वाने के लिए कसरत चलती रही।

मंगलवार, 4 जनवरी 2011

श्रद्घांजलि - श्री अतुल माहेश्वर जी

श्री अतुल माहेश्वर जी 
                                    (03.05.1956 - 03.01.2011)

देश के प्रमुख हिंदी समाचार पत्र अमर उजाला के प्रबंध निदेशक और पत्रकार अतुल माहेश्वरी पंचतत्व में विलीन हो गए। वे 55 वर्ष के थे। यमुना तट पर सेक्टर-94 स्थित श्मशान घाट पर हजारों लोगों ने नम आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दी। उनकेपुत्र तन्मय माहेश्वरी ने जब मुखाग्नि दी तो वहां उपस्थित लोगों के आंसू छलक आए। अंतिम संस्कार में राजनीतिक, प्रशासनिक, सांस्कृतिक और मीडिया जगत से जुड़ी अनेक हस्तियां शामिल हुईं।

अमर उजाला समूह के प्रमुख के निधन से मीडिया जगत स्तब्ध
सोमवार सुबह गुड़गांव के एक निजी अस्पताल में संक्षिप्त बीमारी के बाद उनका निधन हो गया था। श्री माहेश्वरी के पार्थिव शरीर को गुड़गांव से नोएडा के सेक्टर-50 स्थित उनके आवास लाया गया। वहां करीबियों और चाहने वालों ने अंतिम दर्शन कर उनसे जुड़ी यादें ताजा कीं। उनके शोक संतप्त परिवार में पत्नी स्नेहलता, पुत्र तन्मय और पुत्री अदिति हैं। श्री माहेश्वरी 37 वर्षों से मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय थे और अमर उजाला पत्र समूह को नई ऊंचाई पर पहुंचाने में उनका अहम योगदान था। उन्होंने अमर उजाला ग्रुप के संस्थापक और अपने पिता मुरारीलाल माहेश्वरी के मार्गदर्शन में इस क्षेत्र में कदम रखा और कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते गए।

उनके नेतृत्व में ही अमर उजाला के संस्करण उत्तर प्रदेश के अलावा हिमाचल, दिल्ली, उत्तराखंड, चंडीगढ़ और जम्मू-कश्मीर से निकलने शुरू हुए। आज समाचार पत्र के 18 संस्करण प्रकाशित हो रहे हैं। श्री माहेश्वरी ने नब्बे के दशक में हिंदी के पहले संपूर्ण आर्थिक दैनिक समाचार पत्र ‘कारोबार’ का प्रकाशन शुरू किया। उन्होंने सफल दैनिक टैब्लायड ‘अमर उजाला कॉम्पैक्ट’ का प्रकाशन शुरू करके नया पाठक वर्ग भी विकसित किया। वह मीडिया क्षेत्र से जुड़े कई संगठनों से संबद्ध थे और दुनियाभर में इस क्षेत्र में हो रहे बदलाव पर पैनी नजर रखते थे।

तीन मई 1956 को दिल्ली में जन्मे श्री माहेश्वरी की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा मथुरा में हुई थी। उन्होंने बरेली से राजनीति विज्ञान में एमए किया था। पढ़ाई केसाथ-साथ पिता मुरारीलाल माहेश्वरी के कामकाज में हाथ बंटाते हुए उन्होंने पत्रकारिता के गुर सीखे। इसके बाद अमर उजाला के विस्तार की कल्पना को साकार करने वे 1986 में मेरठ चले गए। उन्होंने अमर उजाला के मेरठ संस्करण को संपूर्ण और आधुनिक अखबार बनाने के लिए दिन-रात एक कर दिया और अखबार को नई पहचान देने के साथ-साथ अपनी उद्यमशीलता का भी सिक्का मनवाया। न सिर्फ अखबार के प्रबंधन बल्कि संपादकीय की भी उन्हें गहरी समझ थी। मृदुभाषी और सौम्य स्वभाव के कारण श्री माहेश्वरी मीडिया जगत में लोकप्रिय थे। अमर उजाला के हर कर्मचारी के लिए वे अभिभावक की तरह थे। कर्मचारियों केप्रति उनका व्यवहार आत्मीयता भरा होता था। उनकी उदारता और सहृदयता का ही नतीजा था कि हर व्यक्ति सहजता से उनसे अपनी बात कह सकता था।

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी, मुख्यमंत्री मायावती और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने अपने शोक संदेश में कहा कि श्री माहेश्वरी हिंदी पत्रकारिता जगत के प्रमुख स्तंभ थे। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने भी उनके निधन पर दुख जताया है। उन्होंने अपने शोक संदेश में कहा कि श्री माहेश्वरी के असामयिक निधन से हिंदी पत्रकारिता में आई रिक्तता को भरना बेहद मुश्किल होगा।
  

 "समाचार परिणाम" ब्लॉग की तरफ से श्री अतुल माहेश्वर जी को   श्रद्घांजलि  और भगवान...अल्लाह उनकी आत्मा को शांति दे !


जहा से लिया है उसका लिक ये है!
http://www.amarujala.com/national/nat-Death%20of%20Mr%20Atul%20Maheshwari-7362.html